आम की खेती

आम की खेती

आम को सभी फलों का राजा कहा जाता है और इसकी खेती भारत में पुराने समय से की जाती है। आम से हमें विटामिन ए और सी काफी मात्रा में मिलते हैं और इसके पत्ते चारे की कमी होने पर चारे के तौर पर और इसकी लकड़ी फर्नीचर बनाने के लिए प्रयोग की जाती है। कच्चे फल चटनी, आचार बनाने के लिए प्रयोग किए जाते हैं और पक्के फल जूस, जैम और जैली आदि बनाने के लिए प्रयोग किए जाते हैं। यह व्यापारिक रूप में आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, पश्चिमी बंगाल, बिहार, केरला, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, महांराष्ट्र और गुजरात में उगाया जाता है।

मिट्टी

आम की खेती कईं तरह की मिट्टी में की जा सकती है। इसकी खेती के लिए घनी ज़मीन, जो 4 फुट की गहराई तक सख्त ना हो, की जरूरत होती है। मिट्टी की पी एच 8.5 प्रतिशत से कम होनी चाहिए।

 

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Dusheri:  यह बहुत ज्यादा क्षेत्रों में उगाया जाता है। इसके फल जुलाई के पहले सप्ताह में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं। इस किस्म के फलों का आकार छोटे से दरमियाना, रंग पीला, चिकना और गुठली छोटी होती है। यह फल ज्यादा देर तक स्टोर किए जा सकते हैं। ये फल सदाबहार लगते रहते हैं। इसकी औसतन पैदावार 150 क्विंटल प्रति वृक्ष होती है।
Langra: इस किस्म के फलों का आकार दरमियाने से बड़ा, रंग निंबू जैसा पीला और चिकना होता है। यह फल रेशे रहित और स्वाद में बढ़िया होते हैं। इसके फल का छिल्का दरमियाना मोटा होता है। इसके फल जुलाई के दूसरे सप्ताह में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं। इसकी औसतन पैदावार 100 किलो प्रति वृक्ष होती है।
Alphonso: इस किस्म को भारी मात्रा में निर्यात किया जाता है। इस किस्म के फल का आकार दरमियाना और अंडाकार होता है। फल का रंग हरा और हल्का पीला होता है और बीच बीच में हल्का गुलाबी रंग भी होता है। फल रेशा रहित और खाने में बहुत ही स्वाद होते हैं। फल का छिल्का पतला और चिकना होता है। इस किस्म के फल जुलाई के पहल सप्ताह में पककर तैयार हो जाते हैं।
Gangian Sandhuri (GN-19): यह किस्म जुलाई के चौथे सप्ताह में पक जाती है। इसमें शूगर की मात्रा 15.7 प्रतिशत और खट्टेपन की मात्रा  0.30 प्रतिशत होती है। इसकी औसतन उपज 80 किलो प्रति वृक्ष होती है।

दूसरे राज्यों की किस्में

हाइब्रिड किस्में : Mallika, Amrapali, Ratna, Arka Arjun, Arka Puneet, Arka Anmol, Sindhu, Manjeera
अन्य किस्में : Alphonso, Bombay Green, Dashahari, Himsagar, Kesar, Neelum, Chausa.

ज़मीन की तैयारी

ज़मीन की अच्छी तरह जोताई करें और फिर समतल करें। ज़मीन को इस तरह तैयार करें ताकि खेत में पानी ना खड़ा हो। ज़मीन को समतल करने के बाद एक बार फिर गहरी जोताई करके ज़मीन को अलग अलग भागों में बांट दें। फासला जगह के हिसाब से अलग-अलग होना चाहिए।

बिजाई

बिजाई का समय
पौधे अगस्त से सितंबर और फरवरी मार्च के महीने में बोये जाते हैं। पौधे हमेशा शाम को ठंडे समय में बोयें। फसल को तेज हवा से बचाएं।
फासला
वृक्ष वाली किस्मों में फासला 9×9 मीटर रखें और पौधों को वर्गाकार में लगाएं।
बीज की गहराई
बिजाई से एक महीना पहले 1x1x1 मीटर के आकार के गड्ढे 9×9 मीटर के फासले पर खोदें। गड्ढों को सूर्य की रोशनी में खुला छोड़ दें। फिर इन्हें मिट्टी में 30-40 किलो रूड़ी की खाद और 1 किलो सिंगल सुपर फासफेट मिलाकर भर दें।
बिजाई का ढंग
बिजाई वर्गाकार और 6 भुजाओं वाले तरीके से की जा सकती है। 6 भुजाओं वाले तरीके से बिजाई करने से 15 प्रतिशत वृक्ष ज्यादा लगाए जा सकते हैं।

बीज

बीज का उपचार
पौधे लगाने से पहले आम की गुठली को डाइमैथोएट के घोल में कुछ मिनट के लिए डुबोयें। यह आम की फसल को सुंडी से बचाता है। बीजों को फंगस के बुरे प्रभावों से बचाने के लिए कप्तान फंगसनाशी से उपचार करें।

अंतर-फसलें

पौधे लगाने के बाद फूले हुए फलों को 4-5 वर्ष तक हटाते रहें, ताकि पौधे के भाग अच्छा विकास कर सकें। फलों के बनने तक यह क्रिया जारी रखें। इस क्रिया के समय अंतर फसलों को अधिक आमदन और नदीनों की रोकथाम के लिए अपनाया जा सकता है। प्याज, टमाटर, फलियां, मूली , बंद गोभी, फूल गोभी और दालों में मूंग, मसूर, छोले आदि को अंतर फसलों के तौर पर प्रयोग किया जा सकता है। आड़ू, आलू बुखारा और पपीता भी मिश्रित खेती के लिए अपनाये जा सकते हैं।

खरपतवार नियंत्रण

नयी फसल के आस-पास गोडाई करें और जड़ों में मिट्टी लगाएं। जब पौधे का विकास होना शुरू हो जाये और यह अपने इर्द-गिर्द के मुताबिक ढल जाये, उस समय इसके साथ अन्य फसल भी उगाई जा सकती है। इस क्रिया का समय किस्म पर निर्भर करता है, जो कि 5-6 वर्ष हो सकता है। मिश्रित खेती फसल में से नदीनों को रोकने में मदद करती है। दालों वाली फसलें जैसे कि मूंगी, उड़द, मसूर और छोले आदि की खेती मिश्रित खेती के तौर पर की जा सकती है। प्याज, टमाटर, मूली, फलियां , फूल गोभी और बंद गोभी जैसी फसलें भी मिश्रित खेती के लिए प्रयोग की जा सकती हैं। बाजरा, मक्की और गन्ने की फसल को मिश्रित खेती के लिए प्रयोग ना करें।

रोग और उसका नियंत्रण

आम के रोगों का प्रबन्धन कई प्रकार से करते है। जैसे की पहला आम के बाग में पावडरी मिल्डयू यह एक बीमारी लगती है इसी प्रकार से खर्रा या दहिया रोग भी लगता है इनसे बचाने के लिए घुलनशील गंधक 2 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में या ट्राईमार्फ़ 1 मिली प्रति लीटर पानी या डाईनोकैप 1 मिली प्रति लीटर पानी घोलकर प्रथम छिड़काव बौर आने के तुरन्त बाद दूसरा छिड़काव 10 से 15 दिन बाद तथा तीसरा छिड़काव उसके 10 से 15 दिन बाद करना चाहिए आम की फसल की एन्थ्रक्नोज फोमा ब्लाइट डाईबैक तथा रेडरस्ट से बचाव के लिए कापर आक्सीक्लोराईड 3 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर 15 दिन के अन्तरालपर वर्षा ऋतु प्रारंभ होने पर दो छिड़काव तथा अक्टूबर-नवम्वर में 2-3 छिड़काव करना चाहिए। जिससे की हमारे आम के बौर आने में कोई परेशानी न हो। इसी प्रकार से आम में गुम्मा विकार या माल्फमेंशन भी बीमारी लगती है इसके उपचार के लिए कम प्रकोप वाले आम के बागो में जनवरी फरवरी माह में बौर को तोड़ दें एवम अधिक प्रकोप होने पर एन.ए.ए. 200 पी.पी.एम रसायन की 900 मिली प्रति 200 लीटर पानी घोलकर छिड़काव करना चहिये। इसके साथ ही साथ आम के बागो में कोयलिया रोग भी लगता है। जिसको किसान भाई सभी आप लोग जानते हैं इसके नियंत्रण के लिए बोरेक्स या कास्टिक सोडा 10 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर प्रथम छिड़काव फल लगने पर तथा दूसरा छिड़काव 15 दिन के अंतराल पर करना चाहिए जिससे की कोयलिया रोग से हमारे फल खराब न हो सके।

फसल की तुड़ाई

आम की परिपक्व फली की तुड़ाई 8 से 10 मिमी लम्बी डंठल के साथ करनी चाहिए, जिससे फली पर स्टेम राट बीमारी लगने का खतरा नहीं रहता है। तुड़ाई के समय फली की चोट व खरोच न लगने दें, तथा मिटटी के सम्पर्क से बचायें। आम के फली का श्रेणीक्रम उनकी प्रजाति, आकार, भार, रंग व परिपत्ता के आधार पर करना चाहिए।

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